श्लोक: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥” (2.47)
अर्थ: “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा छोड़कर कर्म करो।”
श्लोक:प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहं किमुच्छते। न हि देहभृद्कश्चिद्धुःखं प्राप्नुयात् कष्टम्॥” (13.20)
अर्थ :”सभी प्राणियों की प्रवृत्ति प्रकृति द्वारा संचालित होती है, इसलिए दुःख से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं है।”
श्लोक:”योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥” (2.48)
अर्थ:हे धनञ्जय! योग में स्थिर होकर कर्म करो और सफलता-असफलता की चिंता छोड़ दो। इस स्थिति को समत्व कहते हैं।
श्लोक:उद्धरेत् आत्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥” (6.5)
अर्थ:आत्मा को आत्मा द्वारा ही उन्नत करें। आत्मा को ही नीचा न गिराएँ, आत्मा स्वयं का मित्र भी है और शत्रु भी।”
गीता का पाठ करते समय एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें। सुबह का समय, विशेषकर ब्रह्ममुहूर्त, गीता पढ़ने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है, क्योंकि उस समय मन और वातावरण दोनों ही शुद्ध होते हैं।
गीता के 18 अध्यायों को क्रमबद्ध तरीके से पढ़ें। हर अध्याय के बाद, उसके संदेश और शिक्षाओं पर विचार करें। इसे धीरे-धीरे पढ़ें, ताकि आप हर श्लोक के अर्थ को समझ सकें।
यदि आप संस्कृत श्लोकों को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं, तो गीता के अनुवाद और टीका का सहारा लें। अनेक विद्वानों ने गीता की टीका और सरल भाषा में व्याख्या की है, जो समझने में सहायक हो सकती है।
गीता का पाठ करने से पहले, मन को शांत और एकाग्र करना आवश्यक है। आप पूजा या ध्यान के माध्यम से अपने मन को शुद्ध कर सकते हैं, जिससे गीता के श्लोकों का सही अर्थ और संदेश समझ में आएगा।
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