यहाँ दुर्गा सप्तशती के 10 प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण श्लोक दिए गए हैं:
1. श्री दुर्गा सप्तशती (दुर्गा स्तुति) से
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या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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2. दुर्गा अष्टश्लोकी से
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सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तु ते॥
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3. महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र से
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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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4. कवच मंत्र
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ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
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5. अपराजिता स्तुति से
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ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
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6. श्री दुर्गा सप्तशती (अर्गला स्तोत्र) से
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रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।
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7. कीलक मंत्र
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ॐ नमश्चण्डिकायै॥
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8. देवी कवच (श्लोक)
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अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
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9. श्री दुर्गा सप्तशती से
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शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
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10. श्री दुर्गा सप्तशती (दुर्गा स्तुति) से
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या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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ये श्लोक दुर्गा सप्तशती के विभिन्न भागों से लिए गए हैं और देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान करते हैं। इन श्लोकों का पाठ करने से भक्तों को देवी की कृपा प्राप्त होती है।
यहाँ दिए गए दुर्गा सप्तशती के 10 श्लोकों की संक्षिप्त व्याख्या:
1. या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता
– इस श्लोक में देवी को समस्त प्राणियों की माता के रूप में नमन किया गया है।
2. सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
– देवी को सभी मंगलकारक और शिवस्वरूपा के रूप में स्तुति की जाती है।
3. या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
– देवी को सम्पूर्ण सृष्टि की शक्ति के रूप में वंदना की गई है।
4. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
– यह बीज मंत्र देवी चामुण्डा की आराधना के लिए है, जो शक्ति का प्रतीक है।
5. ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी
– इस श्लोक में देवी के विभिन्न नामों का गुणगान किया गया है, जो उनकी विविध शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
6. रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि
– इस श्लोक में देवी से सुंदरता, विजय, यश, और शत्रुओं के नाश की कामना की जाती है।
7. ॐ नमश्चण्डिकायै
– देवी चण्डिका को समर्पित यह श्लोक उनका सम्मान और नमन करने के लिए है।
8. अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि
– इस श्लोक में देवी गिरिनंदिनी (पार्वती) को पृथ्वी की आस्था और आनंद के रूप में वर्णित किया गया है।
9. शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे
– इस श्लोक में देवी को शरण में आए हुए दीनों और पीड़ितों की रक्षा करने वाली कहा गया है।
10. या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता
– इस श्लोक में देवी को बुद्धि और ज्ञान का स्रोत माना गया है, जो समस्त प्राणियों में विद्यमान है।