गणेश चतुर्थी व्रत कथा और महत्व | Ganesh chaturthi vrat katha and importance
गणेश चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश को समर्पित होता है, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि, और सौभाग्य के देवता माना जाता है। गणेश चतुर्थी व्रत के दौरान भगवान गणेश की पूजा की जाती है और व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व होता है। यहाँ गणेश चतुर्थी व्रत की एक प्रचलित कथा दी जा रही है:
गणेश चतुर्थी व्रत कथा:
प्राचीन समय की बात है, महाराज पृथ्वीसेन नामक एक राजा थे, जो अपनी प्रजा के साथ बहुत न्यायपूर्वक शासन करते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण वे हमेशा चिंतित रहते थे। एक दिन, उनके कुलगुरु ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए भगवान गणेश की आराधना और चतुर्थी के व्रत का पालन करने का सुझाव दिया।
राजा पृथ्वीसेन ने अपनी रानी के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी का व्रत किया और भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा की। उन्होंने पूरे भक्ति भाव से व्रत किया और प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान गणेश ने राजा को आशीर्वाद दिया कि उन्हें जल्द ही एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी।
कुछ समय बाद, रानी ने एक सुंदर और बुद्धिमान पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के जन्म से राजा और रानी अत्यंत प्रसन्न हुए और पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई। उस समय से, राजा ने यह प्रण किया कि वे और उनके परिवारजन हर साल गणेश चतुर्थी का व्रत करेंगे और भगवान गणेश की पूजा करेंगे।
इस प्रकार, गणेश चतुर्थी व्रत की महिमा पूरे राज्य में फैल गई और लोग इसे करने लगे। माना जाता है कि इस व्रत को करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व:
इस व्रत को रखने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। व्रत के दौरान भगवान गणेश की कथा सुनने से व्रत का फल और भी बढ़ जाता है।
इस कथा को सुनने और भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों को आशीर्वाद मिलता है और वे जीवन में सुख-शांति का अनुभव करते हैं।